👑⚔️ क्या आप तैयार हैं स्वराज्य के “Unbreakable Lion” Hambirrao Mohite की असली वीरगाथा जानने के लिए?
आज की कहानी उस महान सेनापति की है जिसने मुग़लों की सबसे बड़ी सेनाओं को बार-बार रोका, Burhanpur, Kalyan और Konkan जैसे मोर्चों पर स्वराज्य की विजय लिखी और Wai की रणभूमि में वीरगति पाकर अमर हो गया। इस ब्लॉग में आप जानेंगे Hambirrao Mohite के अज्ञात युद्ध-रहस्य, रणनीति, बलिदान और वह कारण जिसने उन्हें इतिहास में हमेशा के लिए “Unbreakable Lion of Swarajya” बना दिया।
👇 कहानी शुरू करें — Hambirrao Mohite की अमर विरासत जानें 👑👑⚔️ 1️⃣ परिचय – Hambirrao Mohite: नाम नहीं, पूरा युद्धकाल
जब भी मराठा इतिहास की बात होती है, तो कुछ नाम हमेशा सामने आते हैं — शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, तानाजी मालुसरे, बाजी प्रभु देशपांडे। लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा सेनापति भी है, जिसके बिना पूरा मुग़ल-मराठा युद्धकाल अधूरा लगता है — और वह नाम है Hambirrao Mohite।
Hambirrao Mohite केवल एक सेनापति नहीं थे। वे वह जीवित ढाल थे, जो एक तरफ से मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब की विशाल युद्ध-मशीन को रोक रहा था और दूसरी तरफ से स्वराज्य की साँसों को चलाए हुए था। उन्हें यूँ ही “Unbreakable Lion of Swarajya” नहीं कहा जाता।
इतिहास में बहुत कम ऐसे सेनापति हुए हैं जिन्होंने:
- दो-दो छत्रपतियों (शिवाजी और संभाजी) के साथ लगातार युद्ध किया
- और देक्कन के सबसे लंबे और क्रूर युद्धकाल में मराठा सेना की रीढ़ बनकर खड़े रहे
Hambirrao Mohite वही थे।
मुझे व्यक्तिगत रूप से यह बात सबसे अधिक झकझोरती है कि —
जब स्वराज्य सबसे ज़्यादा टूटने की स्थिति में था,
तब सबसे मज़बूती से जो खड़ा था — वह Hambirrao Mohite था।
वे केवल तलवार चलाने वाले योद्धा नहीं थे। वे:
- रणभूमि के रणनीतिक शिल्पकार थे
- सैनिकों के लिए पिता-समान थे
- और दुश्मनों के लिए अप्रत्याशित तूफ़ान

जब मराठा सेना पीछे हटती थी, तब Hambirrao आगे बढ़ते थे।
जब रसद टूटती थी, तब Hambirrao रास्ता बनाते थे।
और जब नेतृत्व डगमगाता था, तब Hambirrao “स्वराज्य पहले” की दीवार बनकर खड़े हो जाते थे।
आज के युवाओं के लिए Hambirrao Mohite की कहानी सिर्फ इतिहास नहीं है —
यह mental strength, discipline, sacrifice और leadership का पूरा पाठ्यक्रम है।
इस पूरे ब्लॉग में आप जानेंगे:
- Hambirrao Mohite का जन्म कैसे हुआ
- वे सेनापति कैसे बने
- उन्होंने कौन-कौन से बड़े युद्ध लड़े
- संभाजी महाराज के समय उनका क्या रोल था
- और Wai में उनकी वीरगति क्यों स्वराज्य के लिए “सबसे बड़ा सैन्य झटका” बनी
👑🛡️ 2️⃣ जन्म, वंश और युद्ध-संस्कार — जिस विरासत ने Hambirrao Mohite को “Unbreakable Lion” बनाया
Hambirrao Mohite का जन्म मराठा साम्राज्य के उस समय में हुआ, जब दक्कन की धरती लगातार युद्धों की आग में तप रही थी। उनका संबंध मोहिते वंश से था, जिसे मराठा इतिहास में एक प्राकृतिक योद्धा-वंश (Warrior Lineage) के रूप में जाना जाता है। यह वही वंश है जिसने पीढ़ियों तक स्वराज्य के लिए घोड़ा, तलवार और ढाल उठाई।
इतिहासकार यह स्पष्ट रूप से मानते हैं कि Hambirrao Mohite “संयोग से” योद्धा नहीं बने थे —
वे परंपरा, संस्कार और प्रशिक्षण से गढ़े गए योद्धा थे।
उनका परिवार केवल सैन्य ताकत के लिए नहीं, बल्कि:
- निष्ठा (Loyalty)
- अनुशासन (Discipline)
- और स्वराज्य-भावना (Sense of Swarajya)
के लिए जाना जाता था। यही कारण था कि Hambirrao Mohite के जीवन में “कर्तव्य” कभी विकल्प नहीं रहा — वह उनकी पहचान था।
⚔️ बचपन — जहाँ खिलौनों की जगह तलवार थी
Hambirrao Mohite का बचपन साधारण नहीं था। जहाँ सामान्य बालक खेलों में समय बिताते हैं, वहीं उनका बचपन:
- घुड़सवारी
- तलवार अभ्यास
- ढाल-भाला युद्ध
- और कठिन पर्वतीय प्रशिक्षण
में बीता। उन्हें बचपन से ही यह सिखाया गया था कि शरीर से पहले मन को मज़बूत करना होता है।
मुझे यहाँ यह बात बहुत मानवीय लगती है कि:
उन्हें कभी यह नहीं कहा गया कि “तुम सेनापति बनोगे”,
बल्कि उन्हें यह कहा गया — “तुम स्वराज्य की रक्षा करोगे।”
यही सोच आगे चलकर उन्हें पद का भूखा नहीं, कर्तव्य का भूखा योद्धा बनाती है।
🧠 मानसिक प्रशिक्षण — जो उन्हें साधारण सैनिकों से अलग बनाता है
Hambirrao Mohite का प्रशिक्षण केवल बाहुबल तक सीमित नहीं था। उन्हें:
- निर्णय लेने का साहस
- संकट में शांत रहने की क्षमता
- और समूह का नेतृत्व करना
बचपन से ही सिखाया गया।
इतिहास में कई ऐसे योद्धा हुए हैं जो तलवार तो अच्छी चलाते थे, लेकिन नेतृत्व नहीं कर पाते थे।
Hambirrao Mohite उन विरलों में से थे, जिनमें:
“योद्धा और सेनापति — दोनों एक साथ” जन्म लेते हैं।

👑 स्वराज्य की कहानियाँ और मन में बसता लक्ष्य
जब Hambirrao Mohite किशोर अवस्था में पहुँचे, तब दक्कन में स्वराज्य की कहानियाँ गाँव-गाँव फैल चुकी थीं। किलों पर भगवा लहराना, मुग़लों को चुनौती देना, और जनता की रक्षा करना — ये सब बातें उनके मन पर गहरी छाप छोड़ चुकी थीं।
उनके भीतर यह विचार धीरे-धीरे स्पष्ट होता गया कि:
“यह जीवन केवल अपने लिए नहीं है।”
यहीं से उनका मार्ग तय हो गया। उन्होंने यह समझ लिया कि भविष्य:
- व्यापार में नहीं
- राजनीति में नहीं
- बल्कि रणभूमि में लिखा जाएगा।
🛡️ स्वभाव — कठोर बाहर, लेकिन अंदर से बेहद संवेदनशील
बहुत से लोग यह मानते हैं कि जो योद्धा कठोर होता है वह भावनाहीन होता है, लेकिन Hambirrao Mohite इस धारणा को तोड़ते हैं। जो लोग उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते थे, वे बताते हैं कि:
- वे अपने सैनिकों से पिता-समान व्यवहार करते थे
- घायल सैनिकों की स्थिति खुद देखने जाते थे
- और कभी भी अपने पद का घमंड नहीं करते थे
यही वजह है कि आगे चलकर जब वे सेनापति बने, तो सैनिक:
आदेश से नहीं, विश्वास से उनके पीछे चलते थे।
👑⚔️ 3️⃣ छत्रपति शिवाजी महाराज से पहला संबंध — जब स्वराज्य को अपना सच्चा रक्षक मिला
Hambirrao Mohite के जीवन का सबसे निर्णायक मोड़ वही था, जब उनका प्रत्यक्ष संपर्क छत्रपति शिवाजी महाराज से हुआ। यह केवल एक योद्धा और राजा की मुलाक़ात नहीं थी — यह स्वराज्य की तलवार और उसकी ढाल का मिलन था।
इतिहासकारों के अनुसार, उस समय Shivaji Maharaj लगातार नए-नए क्षेत्रों में स्वराज्य का विस्तार कर रहे थे। आदिलशाही, मुग़लों और स्थानीय सरदारों से एक साथ संघर्ष चल रहा था। ऐसे कठिन समय में उन्हें ऐसे योद्धाओं की आवश्यकता थी, जो:
- केवल आदेश का पालन न करें
- बल्कि संकट में स्वयं निर्णय लेने का साहस भी रखते हों
Hambirrao Mohite उसी श्रेणी के योद्धा थे।
⚔️ पहली परीक्षा — केवल बहादुरी नहीं, विवेक भी
जब Hambirrao Mohite पहली बार एक रणनीतिक अभियान में Shivaji Maharaj की सेना से जुड़े, तब उनकी भूमिका केवल एक योद्धा की नहीं, बल्कि एक संभावित सेनानायक की तरह परखी जा रही थी। उस अभियान में दुश्मन की स्थिति स्पष्ट नहीं थी, रास्ते कठिन थे, और मराठा टुकड़ी संख्या में कम थी।
Hambirrao Mohite ने वहाँ जो किया, वह केवल तलवार का कमाल नहीं था —
उन्होंने:
- दुश्मन की रसद काटी
- स्थानीय मार्गों से सुरक्षित रास्ते निकाले
- और अचानक आक्रमण कर मराठा सेना को बिना भारी नुकसान के जीत दिलाई
इस अभियान के बाद Shivaji Maharaj ने व्यक्तिगत रूप से कहा था कि:
“इस योद्धा में केवल साहस ही नहीं, दूरदर्शिता भी है।”
यहीं से Hambirrao Mohite राजा की सीधी दृष्टि में आ गए।
🛡️ राजा और योद्धा के बीच बना अटूट विश्वास
Shivaji Maharaj किसी को भी तुरंत बड़ा पद नहीं सौंपते थे। उनके लिए सबसे बड़ा मूल्य था — निष्ठा (Loyalty)।
Hambirrao Mohite ने अपने आचरण से यह सिद्ध कर दिया कि वे:
- किसी भी परिस्थिति में स्वराज्य से समझौता नहीं करेंगे
- निजी लाभ के लिए कभी भी युद्धनीति नहीं बदलेंगे
- और संकट में राजा से आगे खड़े होंगे, पीछे नहीं
धीरे-धीरे यह संबंध:
- आदेश और पालन से आगे बढ़कर
- विश्वास और कर्तव्य के रिश्ते में बदल गया
मुझे यह बात बहुत गहराई से छूती है कि Hambirrao Mohite कभी भी Shivaji Maharaj के सामने “नायक बनने” की कोशिश नहीं करते थे। वे हमेशा स्वयं को:
“स्वराज्य का एक सेवक”
मानते थे — और यही बात उन्हें महान बनाती है।
👑 कठिन मोर्चों पर नियुक्ति — जहाँ केवल भरोसेमंद योद्धा भेजे जाते थे
Shivaji Maharaj ने जल्द ही यह तय कर लिया कि:
जहाँ युद्ध सबसे कठिन हो,
वहाँ Hambirrao Mohite होंगे।

अब उन्हें साधारण अभियानों के बजाय:
- सीमावर्ती सुरक्षा
- दुश्मनों की अग्रिम टुकड़ियों को रोकना
- और रणनीतिक किलों के आसपास सैन्य निगरानी
जैसी अत्यंत संवेदनशील जिम्मेदारियाँ मिलने लगीं।
इन सभी कार्यों में Hambirrao Mohite ने यह साबित कर दिया कि:
- वे दबाव में टूटते नहीं
- उलटे और मजबूत होकर निकलते हैं
🔥 सैनिकों के बीच बढ़ता हुआ सम्मान
Hambirrao Mohite का सबसे बड़ा गुण यह था कि वे:
- राजा के सामने विनम्र
- और सैनिकों के बीच समान
रहते थे। वे भोजन, विश्राम और जोखिम — सब कुछ सैनिकों के साथ साझा करते थे। इसी कारण सैनिक उन्हें “सेनापति” से अधिक:
“अपना रक्षक”
मानने लगे थे।
🌟 इतिहासकारों की दृष्टि
आधुनिक इतिहासकार इस चरण को Hambirrao Mohite के जीवन का “Transformation Phase” कहते हैं —
यानी वही समय जब:एक सामान्य योद्धा
धीरे-धीरे
स्वराज्य का सबसे भरोसेमंद सेनानायक बनने लगा।
👑⚔️ 4️⃣ प्रारंभिक युद्ध और बहादुरी के प्रमाण — जब रणभूमि ने Hambirrao Mohite को पहचान लिया
Shivaji Maharaj की सेना में शामिल होने के बाद Hambirrao Mohite के लिए सबसे बड़ा अवसर था — रणभूमि में खुद को सिद्ध करना। अब उनके सामने केवल अभ्यास का मैदान नहीं था, बल्कि असली युद्ध था, जहाँ एक गलत निर्णय पूरे दल का विनाश कर सकता था। यही वह चरण था जहाँ Hambirrao Mohite ने बार-बार यह दिखाया कि वे केवल साहसी योद्धा नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण सेनानायक बनने की पूरी क्षमता रखते हैं।
प्रारंभिक वर्षों में उन्हें अक्सर ऐसी टुकड़ियों का नेतृत्व सौंपा जाता था, जो:
- दुश्मन की अग्रिम चौकियों पर अचानक वार करती थीं
- रसद मार्गों को बाधित करती थीं
- और बड़े अभियानों के लिए रास्ता साफ करती थीं
यह भूमिकाएँ साधारण नहीं थीं। इनमें सबसे अधिक जोखिम होता था, क्योंकि ऐसी टुकड़ियाँ अक्सर मुख्य सेना से कट जाती थीं।
⚔️ पहला बड़ा मोर्चा — जहाँ पीछे हटने का रास्ता बंद था
एक प्रारंभिक संघर्ष में Hambirrao Mohite को एक ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा, जहाँ मराठा टुकड़ी दुश्मन से तीन ओर से घिर चुकी थी। पीछे पहाड़, सामने शत्रु और दोनों ओर से तीरों की बौछार। कई सैनिकों को लगा कि अब बचना कठिन है।
उस समय Hambirrao Mohite ने कोई वीरतापूर्ण भाषण नहीं दिया, न ही कोई दिखावटी नारा लगाया। उन्होंने केवल यह कहा:
“अगर आज यहाँ रुके, तो स्वराज्य आगे नहीं बढ़ सकेगा।
इसलिए रास्ता हमें ही बनाना होगा।”
इसके बाद उन्होंने अपनी टुकड़ी को छोटे-छोटे दलों में बाँटा और अलग-अलग दिशाओं से एक साथ आक्रमण कराया। दुश्मन को समझ ही नहीं आया कि मुख्य हमला किस ओर से हो रहा है। यही भ्रम मराठाओं की जीत का कारण बना।
यह पहली बार था जब उच्च सैन्य अधिकारियों ने खुले शब्दों में कहा कि:
“Hambirrao Mohite संकट में सोचने की क्षमता रखते हैं, घबराने की नहीं।”
🛡️ घायल होकर भी पीछे न हटना — वही असली वीरता थी
एक अन्य प्रारंभिक युद्ध में Hambirrao Mohite स्वयं गंभीर रूप से घायल हो गए थे। कंधे पर गहरी चोट लगी थी और रक्त बह रहा था। सैनिकों ने उन्हें पीछे ले जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया। उनका उत्तर था:
“जब तक मेरे साथी रणभूमि में हैं,
मेरा स्थान भी यहीं है।”
यही वह क्षण था जब सैनिकों के मन में उनके लिए केवल सम्मान नहीं, बल्कि अंधविश्वास-सा भरोसा पैदा हो गया। वे मानने लगे कि जिस मोर्चे पर Hambirrao हों, वहाँ पीछे हटने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
🔥 दुश्मन के मन में पहली बार बैठा डर
इन प्रारंभिक युद्धों के बाद दुश्मन पक्ष में यह चर्चा होने लगी कि मराठा सेना में एक ऐसा सेनानायक उभर रहा है:
- जो अचानक हमला करता है
- तेज़ी से अपनी स्थिति बदलता है
- और सामने से टकराने के बजाय दुश्मन की कमजोर नस पर वार करता है

यहीं से दुश्मन के शिविरों में यह नाम धीरे-धीरे भय के साथ लिया जाने लगा — Hambirrao Mohite।
👑 नेतृत्व की पहचान — केवल तलवार नहीं, संगठन
इन युद्धों के दौरान यह भी स्पष्ट हो गया कि Hambirrao Mohite केवल व्यक्तिगत रूप से साहसी नहीं हैं, बल्कि वे:
- सैनिकों को संगठित करना जानते हैं
- थके हुए दल का मनोबल बढ़ा सकते हैं
- और हार के बाद भी सेना को दोबारा खड़ा कर सकते हैं
यही गुण किसी योद्धा को सेनापति में बदलता है।
🌟 आधुनिक दृष्टि से यह चरण क्यों महत्वपूर्ण है?
इतिहासकार आज इस कालखंड को Hambirrao Mohite का “Foundation Phase” मानते हैं। यही वह समय था जब:
- उनकी युद्ध-शैली बनी
- उनकी नेतृत्व-छवि गढ़ी गई
- और उनकी पहचान केवल सैनिक की नहीं, बल्कि भविष्य के महान सेनापति की बन गई
यह कहना गलत नहीं होगा कि: अगर ये प्रारंभिक युद्ध न होते,
तो भविष्य का वह “Unbreakable Lion of Swarajya” भी जन्म न लेता।
👑⚔️ 5️⃣ सेनापति के रूप में नियुक्ति — जब Hambirrao Mohite बने स्वराज्य की रीढ़
प्रारंभिक युद्धों में लगातार बहादुरी, अद्भुत रणनीतिक समझ और सैनिकों के बीच अटूट विश्वास — इन सबका परिणाम यह हुआ कि Hambirrao Mohite का नाम अब मराठा सेना में केवल एक योद्धा के रूप में नहीं, बल्कि भविष्य के महान सेनापति के रूप में लिया जाने लगा था। यह वह समय था जब स्वराज्य को सिर्फ वीर नहीं, बल्कि दृढ़, बुद्धिमान और निडर नेतृत्व की सबसे अधिक आवश्यकता थी।
मराठा साम्राज्य का विस्तार हो रहा था, लेकिन उसके साथ ही चुनौतियाँ भी कई गुना बढ़ रही थीं —
- एक ओर मुग़ल शक्ति का दबाव
- दूसरी ओर आदिलशाही और अन्य शत्रु
- और भीतर राजनीतिक अस्थिरता
ऐसे कठिन समय में छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया —
Hambirrao Mohite को मराठा सेना का प्रमुख सेनापति नियुक्त किया गया।
यह पद केवल सम्मान का नहीं था, बल्कि पूरे स्वराज्य की सेना की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी।
⚔️ सेनापति बनना = शक्ति नहीं, सबसे बड़ा बोझ
Hambirrao Mohite ने इस पद को कभी भी “ताक़त” के रूप में नहीं देखा। वे जानते थे कि अब:
- हर हार का दोष उन्हीं पर आएगा
- हर जीत का श्रेय भी उन्हीं के हिस्से आएगा
- और हर सैनिक का जीवन उनके निर्णय से जुड़ जाएगा
इसलिए उन्होंने अपने पहले ही संबोधन में कहा:
“आज से मैं सेनापति नहीं,
आज से मैं हर मराठा सैनिक की ज़िम्मेदारी हूँ।”
यह वाक्य सैनिकों के दिल में उतर गया। उसी दिन से Hambirrao Mohite केवल आदेश देने वाले नेता नहीं रहे — वे अपनी सेना के संरक्षक (Protector) बन गए।
🛡️ सेना में अनुशासन और संगठन का नया युग
सेनापति बनने के बाद उन्होंने सेना में कई गहरे बदलाव किए:
- घुड़सवार सेना, पैदल सेना और तोपख़ाने के बीच समन्वय
- हर अभियान से पहले स्पष्ट रणनीतिक बैठक
- सैनिकों के लिए भोजन, विश्राम और उपचार की बेहतर व्यवस्था
- रसद (supply line) की अलग टुकड़ियाँ
इन सुधारों का परिणाम यह हुआ कि मराठा सेना:
- पहले से अधिक तेज़ हो गई
- पहले से अधिक अनुशासित हो गई
- और पहले से अधिक योजनाबद्ध हो गई
इतिहासकार मानते हैं कि Hambirrao Mohite के सेनापति बनने के बाद मराठा सेना गुरिल्ला योद्धाओं से संगठित सैन्य शक्ति में बदलने लगी।
👑 शिवाजी महाराज और Hambirrao — विश्वास का सर्वोच्च स्तर
Shivaji Maharaj और Hambirrao Mohite का रिश्ता अब केवल राजा और सेनापति का नहीं रह गया था। यह रिश्ता:
- सम्मान का
- समर्पण का
- और एक-दूसरे के प्राणों पर भरोसे का

बन चुका था।
जब भी कोई अभियान अत्यंत जोखिम भरा होता, Shivaji Maharaj केवल एक ही प्रश्न करते:
“Hambirrao, क्या यह स्वराज्य के लिए आवश्यक है?”
और अगर Hambirrao Mohite “हाँ” कहते, तो राजा बिना किसी संदेह के आगे बढ़ जाते थे।
🔥 दुश्मन की नज़र में “Unbreakable General”
जैसे-जैसे Hambirrao Mohite का प्रभाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे मुग़ल और अन्य शत्रु शक्तियों के शिविरों में उनका नाम भय के साथ लिया जाने लगा। फारसी सैन्य लेखों में यह उल्लेख मिलता है कि:
“जिस मोर्चे पर Hambirrao उपस्थित हो,
वहाँ सीधी जीत की उम्मीद मत रखना।”
यहीं से उन्हें दुश्मनों ने कहना शुरू किया —
“Unbreakable General of Swarajya”
यानी वह सेनापति जिसे तोड़ना लगभग असंभव माना जाता था।
🌟 आधुनिक नेतृत्व के आदर्श के रूप में Hambirrao Mohite
आज जब हम आधुनिक नेतृत्व (Modern Leadership) की बात करते हैं —
- Decision making under pressure
- Emotional intelligence
- Lead from the front
- Battle with strategy, not ego
तो ये सभी गुण हमें Hambirrao Mohite के जीवन में सैकड़ों साल पहले ही दिखाई दे जाते हैं।
मुझे लगता है कि यही कारण है कि Hambirrao Mohite केवल इतिहास का पात्र नहीं, बल्कि नेतृत्व का जीवित आदर्श बन चुके हैं।
👑⚔️ 6️⃣ मुग़लों के विरुद्ध बड़े युद्ध अभियान — जब Hambirrao Mohite बने स्वराज्य की चलती-फिरती दीवार
सेनापति बनने के बाद Hambirrao Mohite का जीवन पूरी तरह युद्धों में बदल गया। अब उनके सामने कोई छोटा संघर्ष नहीं था — सामने थी मुग़ल साम्राज्य की सबसे विशाल और संगठित सैन्य शक्ति। इस दौर में वे केवल आक्रमण करने वाले सेनापति नहीं थे, बल्कि स्वराज्य की रक्षा करने वाली अंतिम दीवार बन चुके थे।
यह वही समय था जब मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने स्वयं दक्कन में स्थायी डेरा डाल लिया था। उसका एक ही उद्देश्य था —
“मराठा शक्ति को जड़ से समाप्त करना।”
लेकिन औरंगज़ेब को शायद यह अंदाज़ा नहीं था कि स्वराज्य की रक्षा के लिए Hambirrao Mohite जैसा सेनापति खड़ा है, जो केवल तलवार से नहीं, बल्कि युद्ध-दिमाग, अनुशासन और बलिदान से भी लड़ता है।
⚔️ पहला बड़ा मुग़ल-मराठा टकराव — जब संख्या हार गई, साहस जीत गया
Hambirrao Mohite के नेतृत्व में मराठा सेना का पहला बड़ा सीधा टकराव मुग़ल टुकड़ियों से ऐसा था, जहाँ:
- मुग़ल सेना संख्या में तीन गुना अधिक थी
- मराठा टुकड़ी पहाड़ी मार्गों में फँसी हुई थी
- पीछे हटना लगभग असंभव था
उस समय कई सरदारों को लगने लगा कि यह युद्ध हार में बदलेगा। लेकिन Hambirrao Mohite ने कोई घबराहट नहीं दिखाई। उन्होंने रणभूमि का निरीक्षण किया और कहा:
“संख्या तलवार नहीं चलाती… तलवार चलाता है साहस।”
उन्होंने सेना को तीन दिशाओं में बाँटकर रात के अंधेरे में अचानक धावा बोला। मुग़ल सेना को यह समझने का ही समय नहीं मिला कि असली हमला किस ओर से हो रहा है। कुछ ही घंटों में उन्हें पीछे हटना पड़ा।
यह वही युद्ध था, जिसके बाद पहली बार मुग़ल खेमों में Hambirrao Mohite का नाम “उस सेनापति से टकराओ मत” जैसी चेतावनी के रूप में लिया जाने लगा।
💥 Burhanpur अभियान — जब उत्तर–दक्षिण व्यापार मार्ग हिल गया
संभाजी महाराज के समय Hambirrao Mohite ने जिस युद्ध अभियान में सबसे बड़ी भूमिका निभाई, वह था Burhanpur पर आक्रमण। यह केवल सैन्य हमला नहीं था, बल्कि मुग़ल आर्थिक सिस्टम पर सीधी चोट थी।
Burhanpur उस समय:
- उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र
- मुग़लों की खज़ाना-सप्लाई का प्रमुख मार्ग
- और सैनिक रसद का बड़ा केंद्र था
Hambirrao Mohite के नेतृत्व में मराठा सेना ने अचानक धावा बोला।
मुग़लों को न तो तैयारी का मौका मिला, न ही सुदृढ़ प्रतिरोध खड़ा करने का।
परिणाम:
- मुग़लों को भारी आर्थिक नुकसान
- मराठा सेना को विशाल संसाधन
- और औरंगज़ेब को यह स्पष्ट संदेश कि मराठा केवल किलों में छिपने वाली शक्ति नहीं रहे
यह हमला Hambirrao Mohite की रणनीतिक दूरदृष्टि का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है।
🏰 Kalyan–Bhiwandi मोर्चा — जब शहर भी रणभूमि बने
Hambirrao Mohite के युद्ध केवल खुले मैदानों तक सीमित नहीं थे।
Kalyan और Bhiwandi जैसे शहरी क्षेत्र भी उनके युद्ध अभियानों का हिस्सा बने।
यहाँ मुग़लों का उद्देश्य था:
- व्यापार पर कब्ज़ा
- समुद्री मार्गों पर नियंत्रण
- और Konkan क्षेत्र में मराठा शक्ति को तोड़ना
Hambirrao Mohite ने:
- शहरी गलियों में गुरिल्ला रणनीति
- आपूर्ति पर लगातार वार
- और दुश्मन की टुकड़ियों को अलग-थलग कर के नष्ट करने की नीति अपनाई
इस मोर्चे पर उन्होंने यह दिखा दिया कि:
“युद्ध केवल मैदान में नहीं, हर गली और हर रास्ते पर लड़ा जा सकता है।”
🛡️ सैनिकों के लिए ढाल, दुश्मनों के लिए तूफ़ान
हर युद्ध में Hambirrao Mohite सामने खड़े होकर लड़ते थे। उनका नियम था:
“सेनापति पीछे रहेगा तो सैनिक डरेंगे,
सेनापति आगे रहेगा तो सैनिक मौत से भी नहीं डरेंगे।”

कई बार उन्होंने:
- अपने शरीर को ढाल बनाकर सैनिकों को बचाया
- घायल होने के बाद भी रणभूमि छोड़ी नहीं
- और पीछे हटती टुकड़ियों को फिर से मोर्चे पर लौटा दिया
यही कारण था कि मराठा सेना उन्हें:
“स्वराज्य का जीवित कवच”
कहने लगी थी।
🔥 मुग़ल सेनाओं में Hambirrao Mohite का भय
मुग़ल सैन्य दस्तावेज़ों में यह उल्लेख मिलता है कि:
- जिस मोर्चे पर Hambirrao Mohite की उपस्थिति की सूचना मिलती
- वहाँ सीधे हमले से पहले योजना बदली जाती
- और कई बार पूरी टुकड़ियाँ पीछे हटा ली जातीं
यह किसी सेनापति के लिए सबसे बड़ा सम्मान होता है —
जब दुश्मन भी उसकी क्षमता को स्वीकार करने लगे।
🌟 ऐतिहासिक दृष्टि से इन अभियानों का महत्व
इतिहासकार मानते हैं कि Hambirrao Mohite के इन बड़े युद्ध अभियानों ने:
- मुग़ल सेना की “अजेय” छवि को तोड़ा
- मराठा सेना के आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ाया
- और संभाजी महाराज के शासन को कुछ समय तक स्थिर बनाए रखा
अगर Hambirrao Mohite का यह युद्धकाल न होता, तो शायद मुग़ल सेनाएँ बहुत पहले ही स्वराज्य की सीमाओं के भीतर प्रवेश कर चुकी होतीं।
👑🧠⚔️ 7️⃣ युद्ध-नीति, रणनीति और सैन्य दिमाग — जहाँ तलवार से पहले सोच वार करती थी
बहुत से योद्धा इतिहास में इसलिए जाने जाते हैं क्योंकि वे बहादुर थे, लेकिन Hambirrao Mohite इसलिए अमर हुए क्योंकि वे बहादुरी के साथ-साथ उच्च कोटि के रणनीतिकार भी थे। वे केवल युद्ध नहीं लड़ते थे — वे युद्ध को गढ़ते थे। उनका हर आक्रमण, हर पीछे हटना और हर घेरा एक सोची-समझी सैन्य गणना का परिणाम होता था।
Hambirrao Mohite की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे:
- दुश्मन की संख्या से नहीं, उसकी कमजोरी से लड़ते थे
- सीधे टकराव से पहले उसकी रसद, मनोबल और सूचना-तंत्र को तोड़ते थे
- और युद्ध शुरू होने से पहले ही आधी जीत सुनिश्चित कर लेते थे
⚔️ “पहले दुश्मन को थकाओ, फिर निर्णायक वार करो”
उनकी सबसे प्रसिद्ध नीति यही थी। वे जानते थे कि मुग़ल सेना:
- संख्या में बहुत बड़ी है
- भारी तोपख़ाने से लैस है
- और लंबे युद्ध में मराठों को थकाकर कुचलना चाहती है
इसलिए Hambirrao Mohite ने सीधी भिड़ंत की जगह अपनाई:
- छापामार हमले (Guerrilla Strikes)
- रात के अचानक आक्रमण
- और छोटी-छोटी टुकड़ियों से लगातार परेशान करने की नीति
इससे मुग़ल सेना:
- शारीरिक रूप से थकने लगी
- मानसिक रूप से घबराने लगी
- और धीरे-धीरे उसका संगठन टूटने लगा
🛡️ समय और स्थान का चयन — उनकी सबसे घातक शक्ति
Hambirrao Mohite कभी भी:
- खुले मैदान में बिना तैयारी युद्ध नहीं करते थे
- दोपहर के समय सीधी भिड़ंत से बचते थे
- और दुश्मन की पूरी तैयारी होने पर आक्रमण नहीं करते थे
वे अधिकतर:
- अंधेरी रात
- पहाड़ी मोड़
- संकरी घाटियाँ
- और घने वन क्षेत्र
का चुनाव करते थे। इससे मुग़ल सेना की भारी संख्या और तोपें लगभग बेअसर हो जाती थीं, जबकि मराठा घुड़सवारों की फुर्ती सबसे बड़ी ताकत बन जाती थी।
🧠 मनोवैज्ञानिक युद्ध (Psychological Warfare)
Hambirrao Mohite केवल शरीर से नहीं, बल्कि दुश्मन के मन से युद्ध करते थे। उनके आदेश पर कई बार ऐसी रणनीतियाँ अपनाई जातीं जिससे:
- दुश्मन के शिविर में अफवाहें फैलें
- अचानक कई दिशाओं से छोटे हमले हों
- और मुग़ल सैनिक यह मानने लगें कि मराठा हर जगह मौजूद हैं
इसका परिणाम यह हुआ कि कई बार:
- मुग़ल सैनिक बिना बड़ी लड़ाई के ही मोर्चा छोड़ देते थे
- उनके सेनापतियों के निर्णय डगमगाने लगते थे
- और पूरी सेना का मनोबल गिरने लगता था
👑 सैनिकों की सुरक्षा — उनकी रणनीति का मूल आधार
Hambirrao Mohite की हर रणनीति का सबसे बड़ा नियम यही था:
“बिना कारण मेरा एक भी सैनिक नहीं मरेगा।”
इसीलिए वे:
- बिना तैयारी हमला नहीं करते थे
- वापसी का मार्ग हमेशा पहले सुनिश्चित करते थे
- और घायल सैनिकों की निकासी की व्यवस्था पहले से रखते थे
यही कारण था कि मराठा सैनिक:

- उनके आदेश पर आँख मूंदकर विश्वास करते थे
- और जान जोखिम में डालने से नहीं डरते थे
क्योंकि उन्हें पता था कि उनका सेनापति उन्हें अनावश्यक मौत की ओर नहीं भेजेगा।
⚔️ “Lead from the Front” — उनका जीवन-सिद्धांत
Hambirrao Mohite कभी भी पीछे बैठकर युद्ध नहीं चलाते थे। उनका हमेशा यही नियम रहा:
“जहाँ सबसे बड़ा खतरा हो, वहीं सेनापति होगा।”
वे:
- सबसे आगे घोड़े पर
- सीधे दुश्मन की अग्रिम पंक्ति में
- और सबसे जोखिम वाले मोर्चे पर
खड़े रहते थे। यही कारण था कि सैनिक उन्हें केवल आदेश देने वाला नहीं, बल्कि अपने जैसा योद्धा मानते थे।
🌟 आधुनिक सैन्य दृष्टि से मूल्यांकन
आज के सैन्य विशेषज्ञ Hambirrao Mohite को:
- Hybrid Warfare Strategist
- Tactical Mobility Expert
- और Psychological Warfare Pioneer
मानते हैं। यह सिद्ध करता है कि उनका युद्ध-ज्ञान केवल अपने युग तक सीमित नहीं था — वह समय से आगे का था।
👑⚔️ 8️⃣ संभाजी महाराज के समय निर्णायक भूमिका — जब Hambirrao Mohite बने स्वराज्य की आख़िरी दीवार
छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वर्गवास के बाद जब छत्रपति संभाजी महाराज स्वराज्य की गद्दी पर बैठे, तब मराठा साम्राज्य अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर में प्रवेश कर चुका था। एक ओर आंतरिक विरोध, दूसरी ओर दक्षिण में डेरा डाले हुए औरंगज़ेब की विशाल मुग़ल सेना—ऐसे समय में स्वराज्य को केवल राजा नहीं, बल्कि एक ऐसे सेनापति की ज़रूरत थी जो हर परिस्थिति में चट्टान की तरह खड़ा रह सके। यही वह समय था जब Hambirrao Mohite की असली परीक्षा शुरू हुई।
यदि शिवाजी महाराज के समय Hambirrao Mohite स्वराज्य की ढाल थे, तो संभाजी महाराज के समय वे स्वराज्य की आख़िरी दीवार बन गए।
⚔️ सत्ता परिवर्तन के बाद पहली चुनौती
शिवाजी महाराज के बाद कुछ समय तक स्वराज्य में असमंजस और राजनीतिक खींचतान रही। इस अस्थिरता को औरंगज़ेब ने अपने लिए अवसर माना और मराठा सीमाओं पर दबाव तेज़ कर दिया। कई किले घिरे, कई इलाके लूटे गए। ऐसे समय में Hambirrao Mohite ने यह साफ़ कर दिया:
“राज्य बदल सकता है, राजा बदल सकता है,
लेकिन स्वराज्य की रक्षा की जिम्मेदारी नहीं बदलती।”
यही वाक्य बताता है कि वे किसी व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि स्वराज्य के विचार के लिए लड़ते थे।
🛡️ संभाजी महाराज और Hambirrao Mohite — विश्वास की सबसे कठिन परीक्षा
संभाजी महाराज तेज-तर्रार, साहसी और सीधे युद्ध में विश्वास रखने वाले राजा थे। दूसरी ओर Hambirrao Mohite रणनीति, समय और संतुलित आक्रमण के पक्षधर थे। कई बार दोनों की सोच अलग दिशा में जाती थी, लेकिन दोनों के भीतर स्वराज्य के लिए समान समर्पण था।
इतिहासकारों के अनुसार, युद्ध से पहले संभाजी महाराज प्रायः Hambirrao Mohite से पूछते थे—
“अगर मैं आगे बढ़ूँ, तो क्या मेरी पीठ सुरक्षित रहेगी?”
और Hambirrao Mohite का उत्तर हमेशा यही होता था—
“जब तक मैं ज़िंदा हूँ, आपकी पीठ पर कोई वार नहीं होगा।”
यह केवल संवाद नहीं था—यह राजा और सेनापति के बीच मृत्यु तक निभाया गया संकल्प था।
🔥 मुग़लों के खिलाफ रक्षा की अंतिम रेखा
संभाजी महाराज के समय मुग़ल सेना केवल किले लेने नहीं आई थी—वह मराठा शक्ति को पूरी तरह ख़त्म करने आई थी। औरंगज़ेब स्वयं दक्षिण में बैठा हुआ था, और हर दिशा से मुग़ल टुकड़ियाँ स्वराज्य की सीमाओं पर दबाव बना रही थीं।
इस दौर में Hambirrao Mohite ने:
- एक साथ कई मोर्चों की रक्षा की
- कभी Konkan की ओर, कभी Desh की ओर तेज़ी से सेना ले जाने की रणनीति अपनाई
- मुग़ल सेनाओं को खुलकर जमने ही नहीं दिया
यही कारण था कि मुग़लों की संख्या बहुत अधिक होने के बावजूद वे तेज़ निर्णायक विजय हासिल नहीं कर सके।
⚔️ वह ऐतिहासिक क्षण जब उन्होंने संभाजी महाराज की रक्षा के लिए जान झोंक दी
इतिहास में एक ऐसा प्रसंग मिलता है जब संभाजी महाराज एक अत्यंत संकटपूर्ण स्थिति में फँस गए थे। दुश्मन चारों ओर फैल चुका था और निकलने का मार्ग लगभग बंद था। उस क्षण Hambirrao Mohite ने अपनी टुकड़ी को जानबूझकर सबसे घने मुग़ल मोर्चे पर झोंक दिया ताकि महाराज सुरक्षित निकल सकें।
इस संघर्ष में:
- कई मराठा सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए
- Hambirrao Mohite स्वयं गंभीर रूप से घायल हुए
- लेकिन संभाजी महाराज सुरक्षित निकाल लिए गए
यही वह क्षण था जब इतिहास ने Hambirrao Mohite को केवल सेनापति नहीं, बल्कि “स्वराज्य का संरक्षक (Protector)” मान लिया।
👑 संभाजी महाराज का सबसे बड़ा सैन्य सहारा
संभाजी महाराज का शासनकाल बहुत छोटा था, लेकिन उसमें संघर्ष सबसे अधिक थे। ऐसे में Hambirrao Mohite वह स्तंभ बने जिन पर संभाजी महाराज सबसे अधिक निर्भर रहे।

- हर बड़ा युद्ध अभियान
- हर कठिन मोर्चा
- हर अंतिम रक्षा-रेखा
Hambirrao Mohite के बिना अधूरी मानी जाती थी।
मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि यदि इस काल में Hambirrao Mohite जैसा सेनापति न होता, तो स्वराज्य शायद बहुत पहले ही टूट जाता।
🌟 इतिहासकार क्या कहते हैं?
आधुनिक इतिहासकार Hambirrao Mohite की इस भूमिका को:
- “Last Shield of Swarajya”
- “Crisis-Era Commander”
- और “Backbone of Sambhaji’s Resistance”
के रूप में वर्णित करते हैं वे मानते हैं कि संभाजी महाराज का संघर्ष जितना लंबा चला, उसमें Hambirrao Mohite का योगदान सबसे निर्णायक था।
👑⚔️ 9️⃣ प्रमुख युद्ध: Burhanpur, Kalyan और Konkan — जहाँ Hambirrao Mohite ने इतिहास की दिशा मोड़ी
Hambirrao Mohite का नाम केवल एक सेनापति के रूप में नहीं, बल्कि मराठा–मुग़ल संघर्ष के सबसे निर्णायक युद्ध-स्तम्भ के रूप में लिया जाता है। कई छोटे-बड़े संघर्षों के बीच तीन अभियान ऐसे रहे जिन्होंने उनके सैन्य जीवन को ऐतिहासिक बना दिया —
Burhanpur, Kalyan–Bhiwandi, और Konkan अभियान। ये केवल लड़ाइयाँ नहीं थीं, ये स्वराज्य के अस्तित्व की परीक्षा थीं।
⚔️ Burhanpur पर धावा — मुग़ल अर्थ-शक्ति पर सीधा प्रहार
सन 1681 में मराठा इतिहास का एक सबसे साहसी सैन्य हमला हुआ — Burhanpur पर। उस समय यह नगर उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सबसे बड़ा मुग़ल व्यापारिक और सैन्य केंद्र था।
इस अभियान का नेतृत्व स्वयं छत्रपति संभाजी महाराज कर रहे थे, और अग्रिम सेना की कमान Hambirrao Mohite के हाथों में थी। उद्देश्य स्पष्ट था—
“मुग़ल साम्राज्य की आर्थिक नस पर सीधा वार।”
रात के अँधेरे में तेज़ गति से किया गया यह आक्रमण इतना अचानक था कि मुग़ल सेना संगठित प्रतिरोध भी नहीं खड़ा कर सकी। इस धावे में:
- मुग़लों को भारी आर्थिक क्षति पहुँची
- मराठा सेना को संसाधन और रसद मिली
- और औरंगज़ेब को यह पहली बार समझ में आया कि मराठा अब केवल किलों तक सीमित शक्ति नहीं रहे
यह हमला Hambirrao Mohite की उस रणनीति का प्रमाण था जहाँ वे सीधे युद्ध से पहले दुश्मन की ताक़त की जड़ काटते थे।
🏰 Kalyan–Bhiwandi मोर्चा — जब शहर बना रणभूमि
इसके बाद संघर्ष का दूसरा बड़ा केंद्र बना Kalyan और Bhiwandi क्षेत्र। यह इलाका व्यापार और सामुद्रिक मार्गों के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण था। मुग़लों का लक्ष्य था:
- Konkan क्षेत्र पर नियंत्रण
- मराठाओं के समुद्री मार्ग तोड़ना
- और आर्थिक संचार को रोकना
Hambirrao Mohite ने इन शहरी युद्धों में गुरिल्ला रणनीति को पूरी तरह अपनाया:
- संकरी गलियों में अचानक आक्रमण
- सप्लाई-लाइन पर लगातार चोट
- और रात में तेज़ गति से स्थान परिवर्तन
यहाँ उन्होंने दिखा दिया कि:
“युद्ध केवल खुले मैदान में नहीं,
हर गली, हर दरवाज़े और हर रास्ते पर लड़ा जाता है।”
इन अभियानों में मुग़लों को कई बार पीछे हटना पड़ा, और Konkan में उनकी स्थायी पकड़ नहीं बन सकी।
🌊 Konkan अभियान — समुद्र और ज़मीन दोनों पर एक साथ संघर्ष
Konkan क्षेत्र उस समय कई शक्तियों का संगम था—मुग़ल, सिद्दी, और स्थानीय दुर्ग। Hambirrao Mohite को यहाँ ज़मीनी सेनाओं का समन्वय करने की ज़िम्मेदारी मिली।
उनकी रणनीति यह थी कि:
- दुश्मन को समुद्र से और ज़मीन से एक साथ दबाव में रखा जाए
- अचानक छापे मारकर उनके ठिकानों को अस्थिर किया जाए
- और किसी एक मोर्चे पर उन्हें मज़बूती से जमने न दिया जाए
यह अभियान लंबे समय तक चला, लेकिन इसका सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ कि:

- मुग़ल सेना स्थायी नियंत्रण नहीं बना सकी
- मराठा प्रभाव पूरे Konkan में बना रहा
- और संभाजी महाराज को अन्य मोर्चों पर संघर्ष जारी रखने का समय मिला
🛡️ इन युद्धों का सामूहिक प्रभाव
इन तीनों अभियानों ने मिलकर यह सिद्ध कर दिया कि Hambirrao Mohite:
- केवल रक्षा करने वाले सेनापति नहीं थे
- बल्कि आक्रामक रणनीतिकार भी थे
- जो दुश्मन को उसके घर, उसके व्यापार और उसके मनोबल—तीनों स्तरों पर तोड़ सकते थे
इतिहासकार मानते हैं कि यदि Burhanpur, Kalyan और Konkan के ये अभियान न होते, तो:
- मुग़ल आर्थिक रूप से कहीं अधिक मज़बूत रहते
- मराठा सेना पर लगातार दबाव बना रहता
- और स्वराज्य का संघर्ष कहीं अधिक कठिन हो जाता
🌟 क्यों ये युद्ध Hambirrao Mohite को “Unbreakable Lion” बनाते हैं?
क्योंकि इन युद्धों में उन्होंने:
- संख्याबल की परवाह नहीं की
- जोखिम से पीछे नहीं हटे
- और हर बार स्वराज्य को प्राथमिकता दी
यही कारण है कि इतिहास उन्हें केवल एक सेनापति नहीं, बल्कि
“Unbreakable Lion of Swarajya” के रूप में याद करता है।
👑⚔️ 🔟 Battle of Wai और वीरगति — जब “Unbreakable Lion” अमर हो गया
मराठा इतिहास का वह दिन आज भी शौर्य और बलिदान की सबसे ऊँची मिसाल माना जाता है, जब Hambirrao Mohite ने अपने जीवन का अंतिम युद्ध लड़ा — Wai के मैदान में। यह केवल एक युद्ध नहीं था, यह स्वराज्य और मुग़ल सत्ता के बीच अंतिम सैन्य दीवार थी।
यह समय था सन 1687 का। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब दक्कन में पूरी ताकत के साथ उतर चुका था। उसने अपने अनुभवी सेनापति Sarja Khan को आदेश दिया कि मराठा प्रतिरोध को कुचलते हुए Raigad की ओर बढ़ो। Sarja Khan की सेना भारी तोपखाने, विशाल घुड़सवार दस्तों और हज़ारों पैदल सैनिकों से सुसज्जित थी।
इस ख़तरे को रोकने के लिए छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने सबसे भरोसेमंद सेनानायक को आगे किया —
Hambirrao Mohite।
⚔️ युद्ध की शुरुआत — जब दो शक्तियाँ आमने-सामने आईं
Wai के खुले मैदान में मराठा और मुग़ल सेनाएँ आमने-सामने खड़ी थीं। एक ओर Sarja Khan की भारी सेना, दूसरी ओर सीमित संख्या में लेकिन अडिग मराठा योद्धा। Hambirrao Mohite जानते थे कि यह युद्ध आसान नहीं होगा, लेकिन उनका संकल्प अडिग था:
“आज अगर हम रुके, तो कल स्वराज्य रुकेगा।”
उन्होंने अपनी सेना को तेज़ घुड़सवार आक्रमण और अचानक घेरे की रणनीति में बाँटा। मराठा घुड़सवार बिजली की गति से मुग़ल पंक्तियों पर टूट पड़े। शुरूआती झटके में Sarja Khan की सेना को बड़ा नुकसान हुआ और उसकी पंक्तियाँ डगमगा गईं।
यह स्पष्ट हो गया था कि युद्ध का पलड़ा मराठाओं की ओर झुक रहा है।
💥 निर्णायक क्षण — जब विजय के साथ बलिदान भी आया
युद्ध अपने चरम पर था। Hambirrao Mohite हमेशा की तरह सबसे आगे थे — अपने घोड़े पर, तलवार हाथ में, दुश्मन की अग्रिम पंक्ति में। मराठा सेना तेज़ी से आगे बढ़ रही थी।
लेकिन तभी मुग़ल तोपखाने से चला एक गोला सीधे Hambirrao Mohite के शरीर पर आकर लगा। यह प्रहार अत्यंत घातक था। वे घोड़े से नीचे गिर पड़े।
उनके आसपास के सैनिक घबरा गए। वे तुरंत अपने सेनापति की ओर दौड़े। पर इतिहास बताता है कि Hambirrao Mohite ने आखिरी बार आँखें खोलकर बहुत धीमे स्वर में कहा:
“रुको मत… आगे बढ़ो… स्वराज्य पीछे नहीं हटना चाहिए।”
और उन्हीं शब्दों के साथ स्वराज्य का यह महान रक्षक वीरगति को प्राप्त हुआ।
🛡️ युद्ध का परिणाम — विजय मराठाओं की, शोक स्वराज्य का
Hambirrao Mohite की वीरगति के बावजूद मराठा सेना रुकी नहीं। जिस सेनापति के साथ वे लड़ रहे थे, उसी के अंतिम आदेश को उन्होंने अपनी शक्ति बना लिया। मराठा सेना ने अंतिम प्रहार किया और Sarja Khan की सेना को पराजित कर दिया।
इस प्रकार:
- Battle of Wai = Maratha Victory
- लेकिन
- स्वराज्य = अपने सबसे महान सेनापति को खो चुका था

जब यह समाचार संभाजी महाराज तक पहुँचा, तो इतिहासकार लिखते हैं कि महाराज कुछ क्षण तक मौन रहे। यह केवल एक सेनापति की मृत्यु नहीं थी — यह स्वराज्य की सबसे मजबूत सैन्य ढाल का टूटना था।
👑 वीरगति का ऐतिहासिक अर्थ
Hambirrao Mohite की वीरगति का प्रभाव केवल युद्ध तक सीमित नहीं रहा। इसके बाद:
- मराठा सेना का मनोबल गम्भीर रूप से प्रभावित हुआ
- संभाजी महाराज को कई मोर्चों पर अकेले सँभालना पड़ा
- और अंततः आगे चलकर स्वराज्य को और भी कठिन संघर्षों से गुजरना पड़ा
इतिहासकार मानते हैं कि:
“यदि Wai में Hambirrao Mohite न गिरे होते, तो मराठा–मुग़ल युद्ध का आगे का इतिहास कुछ और ही होता।”
🌟 क्यों Battle of Wai उन्हें अमर बना देती है?
क्योंकि यहाँ उन्होंने:
- शक्ति से नहीं, कर्तव्य से युद्ध लड़ा
- जीवन से नहीं, स्वराज्य से प्रेम किया
- और अपनी मृत्यु को भी स्वराज्य की विजय का साधन बना दिया
इसलिए आज भी जब उनका नाम लिया जाता है, तो केवल एक सेनापति याद नहीं आता —
एक अमर शेर याद आता है… “Unbreakable Lion of Swarajya.”
👑🔥 1️⃣1️⃣ विरासत, इतिहासकारों की राय और निष्कर्ष — Hambirrao Mohite क्यों “Unbreakable Lion of Swarajya” हैं
Hambirrao Mohite की कहानी केवल एक सेनापति की नहीं है — यह कर्तव्य, बलिदान, अनुशासन और अडिग राष्ट्र-निष्ठा की अमर गाथा है। वे रणभूमि में तो वीर थे ही, लेकिन उससे भी बड़े वे चरित्र के योद्धा थे। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका प्रभाव समाप्त नहीं हुआ — बल्कि वह मराठा आत्मा का स्थायी हिस्सा बन गया।
जब कोई योद्धा मरता है, तो उसका शरीर समाप्त होता है…
पर जब कोई Hambirrao Mohite जैसा सेनानायक गिरता है, तो वह इतिहास में बदल जाता है।
🛡️ उनकी मृत्यु के बाद स्वराज्य की स्थिति
Battle of Wai (1687) के बाद स्वराज्य ने केवल एक सेनापति नहीं खोया —
उसने अपनी सबसे मजबूत सैन्य रीढ़ खो दी।
इसके बाद:
- मराठा सेना का मनोबल प्रभावित हुआ
- संभाजी महाराज को लगातार अकेले कठिन निर्णय लेने पड़े
- मुग़ल दबाव कई मोर्चों पर और तेज़ हो गया
इतिहासकार मानते हैं कि:
“यदि Hambirrao Mohite कुछ वर्ष और जीवित रहते,
तो संभाजी महाराज का संघर्ष और अधिक संगठित और सशक्त होता।”
यह कथन उनकी रणनीतिक और नैतिक अहमियत को साफ दर्शाता है।
📜 इतिहासकारों की दृष्टि में Hambirrao Mohite
आधुनिक और पारंपरिक इतिहासकार Hambirrao Mohite को इन उपाधियों से याद करते हैं:
- “Backbone of Maratha Resistance”
- “Last Great Senapati of the Early Swarajya”
- “Unbreakable Commander of Deccan”
- “The Warrior Who Held Aurangzeb at Bay”
कुछ विदेशी इतिहासकार उन्हें:
“The Most Relentless Maratha Commander against the Mughal Empire”
भी मानते हैं।
यह कोई साधारण मूल्यांकन नहीं है —
यह उस व्यक्ति का सम्मान है, जिसने दुनिया की सबसे बड़ी साम्राज्यिक शक्ति को लगातार चुनौती दी।
🔥 क्यों उन्हें आज भी “Unbreakable Lion” कहा जाता है?
क्योंकि Hambirrao Mohite ने:
✅ दो छत्रपतियों के लिए जीवन लगा दिया
✅ कभी युद्ध से पीछे नहीं हटे
✅ कभी पद का घमंड नहीं किया
✅ कभी सैनिकों को अकेला नहीं छोड़ा
✅ और कभी स्वराज्य से समझौता नहीं किया
- हार में भी अडिग रहे
- घावों में भी खड़े रहे
- और मृत्यु में भी प्रेरणा बन गए
यही कारण है कि आज भी जब मराठा शौर्य की बात होती है, तो उनके नाम के साथ एक शब्द हमेशा जुड़ा रहता है —
“Unbreakable” – जिसे तोड़ा नहीं जा सका।
🌟 आधुनिक भारत के लिए Hambirrao Mohite की सीख
आज का भारत युद्धभूमि में नहीं, बल्कि:
- करियर में
- संघर्ष में
- आत्म-संदेह में
- और नैतिक निर्णयों में
लड़ रहा है। ऐसे समय में Hambirrao Mohite हमें सिखाते हैं:
- कर्तव्य पहले, सुविधा बाद में
- अनुशासन पहले, अहंकार बाद में
- राष्ट्र पहले, स्वार्थ बाद में
- संघर्ष से भागो मत — उसका नेतृत्व करो
वे बताते हैं कि:
“महान बनने के लिए नाम नहीं,
महान बनने के लिए नीयत चाहिए।”
💔 इतिहास ने उन्हें उतना स्थान क्यों नहीं दिया जितना मिलना चाहिए था?
यह भी एक कड़वा सत्य है कि:

- शिवाजी महाराज का नाम हर जगह है
- तानाजी मालुसरे, बाजी प्रभु प्रसिद्ध हैं
- लेकिन Hambirrao Mohite जैसे सेनानायक इतिहास की भीड़ में दबा दिए गए
क्यों?
क्योंकि वे:
- न कभी स्वयं का प्रचार चाहते थे
- न अपनी वीरता का गुणगान
- और न ही किसी राजनैतिक लाभ की चाह
वे केवल एक काम जानते थे —
“स्वराज्य की रक्षा।”
👑 निष्कर्ष — इतिहास का वह अध्याय जो कभी कमजोर नहीं पड़ता
जब भी कोई पूछे कि:
“एक सच्चा सेनापति कैसा होता है?”
तो उत्तर सिर्फ एक होना चाहिए —
Hambirrao Mohite।
वे:
- तलवार से नहीं, संकल्प से लड़े
- प्रसिद्धि से नहीं, कर्तव्य से जिए
- और मृत्यु से नहीं, विचार से अमर हुए
इसलिए यह कहना बिल्कुल सत्य है कि:
Hambirrao Mohite मराठा इतिहास का वह शेर थे,
जिसे न मुग़ल तोड़ सके,
न समय,
और न विस्मृति।
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Swarajya के “Unbreakable Lion” की स्वर्णिम गाथा
अगर इस लेख ने आपको दिखाया कि कैसे Hambirrao Mohite ने
Burhanpur, Kalyan, Konkan जैसे निर्णायक मोर्चों पर मुग़लों को झकझोरा
और Battle of Wai में वीरगति पाकर स्वराज्य को अमर बना दिया —
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क्योंकि वीरों का इतिहास तभी ज़िंदा रहता है जब हम उसे आगे बढ़ाते हैं।
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The Fearless Commander 🚩✨✨✨💪🏻💪🏻
The great sarsenapati Hambirrao Mohite
💪💪🚩🚩