⚔️ क्या आप तैयार हैं उस योद्धा की असली कहानी पढ़ने के लिए जिसने अपनी जान देकर सिंहगढ़ जीत लिया?
आज आप पढ़ने जा रहे हैं Tanaji Malusare की वह गाथा जिसने स्वराज्य को नई दिशा दी और शिवाजी महाराज के दिल में अमर स्थान पा लिया। यह सिर्फ युद्ध की कहानी नहीं—बल्कि बलिदान, निष्ठा और वीरता की वह मिसाल है जिसे इतिहास सदियों तक याद रखेगा।
📖 INTRODUCTION
Tanaji Malusare — यह नाम सुनते ही मराठा इतिहास का सबसे साहसी योद्धा, सबसे वफादार मित्र और सबसे बड़ा बलिदानी मन में उभरता है। भारत के इतिहास में कई युद्ध लड़े गए, कई जीत और हार दर्ज हुईं, लेकिन सिंहगढ़ का युद्ध (1670) आज भी अलग ही स्थान रखता है—क्योंकि वह जीत तलवार से नहीं, बलिदान से मिली थी।
Tanaji Malusare केवल एक योद्धा नहीं थे; वे छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र, विश्वासपात्र सरदार और स्वराज्य की नींव को मजबूत करने वाले प्रमुख योद्धाओं में से एक थे। उनकी बहादुरी का स्तर यह था कि शिवाजी महाराज स्वयं कहते थे—
“माझा सिंह—माझा तानाजी!”

इतिहास में Tanaji Malusare का उल्लेख वीरता, निष्ठा और त्याग के प्रतीक के रूप में होता है। कोंढाणा किला (आज का सिंहगढ़) मुगल सरदार उदयभान राठौड़ के हाथों में था और वह किला एक रणनीतिक चाबी जैसा था। यदि स्वराज्य को आगे बढ़ना था, तो कोंढाणा पर अधिकार आवश्यक था। और उस अधिकार की जिम्मेदारी Tanaji Malusare के मजबूत कंधों पर आई।
⭐Tanaji Malusare का प्रारंभिक जीवन (Early Life & Background)
Tanaji Malusare का जन्म लगभग 1600–1608 के बीच महाराष्ट्र के रायगड जिले के मुरुंबदे गांव (Poladpur region) में हुआ माना जाता है। वे मराठा कुणबी मालुसरे कुल से थे, जो अपनी परंपरागत युद्धकला, गांव की सुरक्षा और सामरिक समझ के लिए जाना जाता था। Tanaji बचपन से ही तेज, फुर्तीले और लड़ाकू स्वभाव के थे। उनके पिता Sardar Kaloji Malusare स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली योद्धा थे, जिनसे Tanaji ने बचपन में ही तलवारबाजी व पहाड़ी युद्ध तकनीक सीखी।
बचपन में Tanaji का अधिकांश समय मावळ क्षेत्र की पहाड़ियों, जंगलों और किलों के आसपास बीतता था। इन्हीं कठिन भूभागों ने उन्हें स्वाभाविक रूप से एक शक्तिशाली मावळ योद्धा बना दिया।
उसी समय उनकी मित्रता एक ऐसे बालक से हुई जिसने आगे चलकर भारत के महानतम राजाओं में स्थान प्राप्त किया—
छत्रपति शिवाजी महाराज।
दोनों की दोस्ती खेल के मैदान से लेकर युद्ध के मैदान तक एक जैसी रही। Tanaji शुरू से ही शिवाजी महाराज को भाई के समान मानते थे। उनकी निष्ठा इतनी गहरी थी कि शिवाजी महाराज ने कई बार कहा—
“तानाजी माझा उजवा हात आहे।”
(“Tanaji मेरा दाहिना हाथ है।”)
युवावस्था तक पहुँचते-पहुँचते Tanaji Malusare ने उत्कृष्ट युद्ध कौशल विकसित कर लिया था—
✔ तलवारबाज़ी
✔ ढाल व भाला संचालन
✔ घुड़सवारी
✔ गुरिल्ला युद्ध कला (गनिमी कावा)
✔ पहाड़ी युद्ध और किलेबंदी की समझ

इन्हीं कौशलों के कारण शिवाजी महाराज ने उन्हें शुरू से ही स्वराज्य आंदोलन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दीं। Tanaji अपनी फुर्ती, तेज निर्णय क्षमता और “पहले हमला—तेज हमला” रणनीति के लिए प्रसिद्ध थे।
उनका जीवन एक साधारण किसान परिवार से शुरू हुआ था,
लेकिन नियति उन्हें स्वराज्य के इतिहास का सबसे बड़ा बलिदानी योद्धा बनाने वाली थी।
⭐Tanaji Malusare और छत्रपति शिवाजी महाराज का अटूट बंधन
इतिहास में मित्रता की कई कहानियाँ मिलती हैं, लेकिन Tanaji Malusare और छत्रपति शिवाजी महाराज का बंधन एक अलग ही ऊँचाई पर खड़ा है। दोनों का बचपन मावळ की उन्हीं पहाड़ियों में बीता जहाँ वे साथ-साथ खेलते, दौड़ते और कभी-कभी लकड़ियों से तलवारबाज़ी का अभ्यास भी करते थे। Tanaji केवल शिवाजी के मित्र नहीं, बल्कि जीवनभर के साथी और विश्वासपात्र थे।
Tanaji Malusare बचपन से ही शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व, उनकी दूरदर्शिता और स्वराज्य के सपने से अत्यंत प्रभावित थे। वे शिवाजी महाराज के हर संघर्ष, हर अभियान और हर जीत में पहली पंक्ति के योद्धा रहे। जब शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की स्थापना का सपना देखा, तब Tanaji उन चुनिंदा लोगों में थे जिन्होंने बिना सवाल किए, पूरी जान के साथ उनके साथ खड़े रहे।
शिवाजी महाराज भी Tanaji पर उतना ही भरोसा करते थे। कहा जाता है कि कई गुप्त बैठकों और रणनीतिक योजनाओं में वे Tanaji को सबसे आगे बैठाते थे। युद्ध की योजना हो या खुफिया गतिविधियाँ—
Tanaji का मत अंतिम निर्णय को प्रभावित करता था।
शिवाजी महाराज ने एक बार अपने दरबार में कहा था:
“तानाजी नस्तां तर माझं स्वराज्य अधुरं राहिलं असतं.”
(“अगर तानाजी न होते, तो मेरा स्वराज्य अधूरा रह जाता।”)

दोनों की मित्रता में केवल भावनाएँ नहीं थीं, बल्कि एक-दूसरे पर अटूट भरोसा था। यही कारण है कि जब सिंहगढ़ किले को वापस लेने का समय आया, तो शिवाजी महाराज के मन में केवल एक ही नाम आया—
Tanaji Malusare।
और Tanaji ने भी बिना क्षणभर देर किए इस अभियान को अपना अंतिम कर्तव्य मानकर स्वीकार कर लिया।
उनका यह बंधन केवल मित्रता की मिसाल नहीं,
बल्कि स्वराज्य की रीढ़ था—
और यही बंधन आगे चलकर भारतीय इतिहास की सबसे महान घटनाओं में बदल गया।
⭐सिंहगढ़ से पहले की असली कहानी
Tanaji Malusare का नाम आज सिंहगढ़ की लड़ाई से जुड़ा हो गया है, लेकिन कोंढाणा किले पर हमला करने से पहले की परिस्थितियाँ उतनी ही महत्वपूर्ण थीं। 1665 में पुरंदर संधि के बाद शिवाजी महाराज को मजबूरन कोंढाणा सहित लगभग 23 किले मुगल साम्राज्य को सौंपने पड़े थे। यह संधि शिवाजी महाराज के मन में हमेशा एक टीस की तरह रही, क्योंकि कोंढाणा किला केवल एक किला नहीं था—वह स्वराज्य के लिए रणनीतिक चाबी था।
कोंढाणा किला ऊँची पहाड़ियों, घने जंगलों और खतरनाक चढ़ाई के बीच स्थित था। यह पुणे क्षेत्र की रक्षा का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र था, और यदि यह किला दुश्मन के हाथों में हो, तो पूरे प्रांत पर मुगल हमला कभी भी हो सकता था। शिवाजी महाराज जानते थे कि कोंढाणा वापस लिए बिना स्वराज्य का विस्तार अधूरा रहेगा।
1670 में जब औरंगज़ेब दक्षिण की ओर ध्यान देने लगा, तब कोंढाणा किला उसकी सेना के एक बेहतरीन राजपूत अधिकारी उदयभान राठौड़ के हाथों में था। उदयभान एक शराबी लेकिन ताकतवर, निर्दयी और अनुभवी योद्धा माना जाता था। उसे कोंढाणा की रक्षा के लिए बड़ी संख्या में सैनिक, हथियार और खाद्यान्न दिया गया था।
उधर शिवाजी महाराज स्वराज्य को पुनर्स्थापित करने की रणनीति बना रहे थे। कई किलों पर फिर से कब्ज़ा किया जा चुका था, लेकिन कोंढाणा सबसे बड़ी चुनौती था। शिवाजी महाराज को ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी—
✔ जो पहाड़ी युद्ध में माहिर हो
✔ जो गनिमी कावा (गुरिल्ला तकनीक) समझता हो
✔ जो मौत से भी न डरता हो
✔ और जिसे दुश्मन के दिल में उतरकर वार करना आता हो
और इस मिशन के लिए केवल एक नाम उपयुक्त था—
Tanaji Malusare।

इतिहासकार लिखते हैं कि जब शिवाजी महाराज ने कोंढाणा पुनः जीतने की चर्चा दरबार में की, तो सबकी नजरें Tanaji की ओर थीं।
लेकिन असली कहानी यह है—Tanaji उस समय अपनी पुत्री रायबा की शादी की तैयारियों में व्यस्त थे।
और यहीं से शुरू होती है भारत के इतिहास की सबसे भावनात्मक और वीर गाथाओं में से एक।
⭐सिंहगढ़ अभियान की योजना
Tanaji Malusare जैसे योद्धा के पास साहस तो था ही, लेकिन सिंहगढ़ जैसा किला जीतने के लिए केवल साहस काफी नहीं था—इसके लिए चाहिए था अत्यंत बुद्धिमत्ता, रणनीति और भूभाग की गहरी समझ। जब शिवाजी महाराज ने कोंढाणा वापस लेने की बात कही, तब दरबार में कई सेनापति उपस्थित थे, लेकिन Tanaji ने स्वयं आगे आकर कहा—
“राजे, कोंढाणा पर आपका अधिकार वापस लाना ही मेरा धर्म है।”
लेकिन योजना बनाना आसान नहीं था। कोंढाणा किला पहाड़ियों की ऊँचाई पर था, और उदयभान राठौड़ ने चारों ओर सशक्त सुरक्षा व्यवस्था कर रखी थी। दिन में हमला करना असंभव था, और रात में रास्ता खोजना भी उतना ही खतरनाक।
इसलिए Tanaji Malusare ने एक अत्यंत चतुर योजना बनाई—
1️⃣ पहाड़ी चढ़ाई का मार्ग तय करना (गुप्त रास्ता)
कोंढाणा के पीछे एक अत्यंत खड़ी और पथरीली दीवार थी, जिस पर से चढ़ना लगभग असंभव माना जाता था। मुगल सेना ने उस दिशा में सुरक्षा भी कम रखी थी, क्योंकि कोई योद्धा उस दिशा से आने की सोचेगा भी नहीं।
लेकिन Tanaji ने यही रास्ता चुना—क्योंकि कठिन रास्तों पर दुश्मन का भरोसा नहीं होता।

2️⃣ “येशी” (गोरपद) का उपयोग
स्थानीय लोग पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए बड़े मॉनिटर लिज़र्ड का इस्तेमाल करते थे। Tanaji ने प्रशिक्षित “येशी” को रस्सी बांधकर खड़ी दीवार पर भेजा, ताकि उसके सहारे सैनिक ऊपर चढ़ सकें।
3️⃣ सेना का आकार छोटा लेकिन प्रभावी रखना
यह हमला अचानक और तेज़ होना था।
इसलिए Tanaji ने बड़ी सेना नहीं ली, बल्कि चुने हुए 300–350 मावळ सैनिकों को साथ लिया—जो रात, पहाड़ी युद्ध और गुरिल्ला कला में निपुण थे।
4️⃣ हमला रात में करना
अंधेरों में पहाड़ों की छाया और हवा का शोर उनके कदमों को छिपा देता था।
रात में चढ़ाई और भोर होते ही किले के भीतर हमला—यही योजना तय हुई।
सभी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं।
लेकिन Tanaji ने अभी तक एक बात शिवाजी महाराज को नहीं बताई थी—
उनकी पुत्री रायबा की शादी का मुहूर्त बहुत निकट था।
अब कहानी आगे और भी भावनात्मक मोड़ लेती है।
⭐गोरपद “येशी” और सिंहगढ़ की सबसे खतरनाक चढ़ाई
सिंहगढ़ अभियान का सबसे कठिन और अद्भुत भाग था—
कोंढाणा किले की खड़ी दीवार पर रात में चढ़ाई।
यही वह क्षण था जिसने Tanaji Malusare की असाधारण बुद्धिमानी और साहस को अमर कर दिया।
कोंढाणा का पश्चिमी भाग एक विशाल, सीधी और फिसलनभरी चट्टान से घिरा था। मुगल सेना को विश्वास था कि इस ओर से कोई पक्षी भी नहीं चढ़ सकता, मनुष्य की तो बात ही छोड़िए।
लेकिन Tanaji ने असंभव को संभव बनाने का निर्णय किया।
⭐ 1️⃣ गोरपद “येशी” — किले की दीवार तोड़ने वाला हथियार
मावळ क्षेत्र में पहाड़ी चढ़ाई के लिए एक अनोखी तकनीक थी—
एक प्रशिक्षित गोरपद (Monitor Lizard) जिसे पकड़कर रस्सी से बांधा जाता था।
इस गोरपद का नाम था “येशी”, और इसे विशेष रूप से किले की दीवारों पर चढ़ने की ट्रेनिंग दी जाती थी।
Tanaji ने येशी को दीवार की ओर बढ़ाया और कहा—
“येशी, शिवरायांच्या स्वराज्यासाठी जा!”
(“येशी, स्वराज्य के लिए चढ़ो!”)\

येशी ने दीवार पकड़ी, पर पहली कोशिश में रस्सी ढीली पड़ी।
सैनिकों का दिल बैठ गया।
लेकिन Tanaji चट्टान की ओर देखे बिना बोले—
“परत प्रयत्न करूया!”
(“फिर कोशिश करेंगे!”)
दूसरी बार येशी ने मजबूती से पकड़ बनाई।
रस्सी ऊपर तक पहुँच गई—
अब मावळ सैनिक एक-एक करके ऊपर चढ़ने लगे।
⭐ 2️⃣ मौत के साए में रात की चढ़ाई
चढ़ाई का रास्ता संकरा, फिसलनभरा और बेहद खतरनाक था।
न जाने कितने स्थानों पर नीचे देखना मौत को बुलाना था।
लेकिन Tanaji Malusare के नेतृत्व में सैनिकों के कदम स्थिर थे।
हर कदम के साथ उनकी सांसें भारी और दिलों की धड़कन तेज़ थी।
मावळ सैनिक फुसफुसाहट में कहते—
“तानाजी आधी जातात, आम्ही मागं नाही राहणार!”
(“जब Tanaji आगे हैं, हम पीछे कैसे रहेंगे!”)
कुछ सैनिक फिसले भी, कुछ के हाथ लहूलुहान हो गए, लेकिन सभी Tanaji की छत्रछाया में ऊपर पहुँचते रहे।
⭐ 3️⃣ किले की दीवार पर पहुँचते ही पहला टकराव
जैसे ही पहले सैनिक ऊपर पहुँचे, मुगल पहरेदारों ने हलचल सुनी।
लेकिन उन्हें मात्र कुछ क्षणों में निष्क्रिय कर दिया गया, ताकि नीचे बाकी सैनिक भी सुरक्षित चढ़ सकें।
और जैसे ही 300 मावळी ऊपर पहुँचे—
कोंढाणा का असली युद्ध शुरू होने वाला था।
⭐उदयभान राठौड़ से टकराव और सिंहगढ़ का महायुद्ध
जैसे ही Tanaji Malusare और उनके 300 मावळ सैनिक कोंढाणा की दीवार पार कर भीतर पहुँचे, उसी क्षण से युद्ध की आग सुलग उठी। मुगल पहरेदार चौंक गए—क्योंकि जिस दिशा से हमले की उम्मीद नहीं थी, वहीं से स्वराज्य के शेर उतर पड़े थे।
पहले ही कुछ मिनटों में किले के बाहरी हिस्से पर मावळों ने कब्जा जमा लिया।
लेकिन असली लड़ाई तो अभी शुरू ही हुई थी—
क्योंकि किले के केंद्र में था उदयभान राठौड़, एक कठोर, बहादुर और अनुभवी राजपूत सेनापति, जिसके पास बड़ी सेना, भारी हथियार और ऊँची किलेबंदी का लाभ था।
⭐ 1️⃣ किले के भीतर घमासान
मावळ सैनिकों ने अंधेरे का फायदा उठाया और कई पहरेदारों को चुपचाप समाप्त किया।
लेकिन जल्द ही युद्ध की आवाज़ें फैल गईं—
ढोल, नगाड़े, तलवारों की टकराहट, और योद्धाओं की गर्जना से कोंढाणा जाग उठा।
मुगल सेना संख्या में अधिक थी, लेकिन मावळ सैनिकों की फुर्ती, रात का अंधेरा और पहाड़ी युद्धकला उन पर भारी पड़ रही थी।
⭐ 2️⃣ Tanaji बनाम उदयभान — सिंहगढ़ का सबसे भीषण द्वंद्व
उदयभान राठौड़ युद्धभूमि में उतर चुका था। उसका विशाल शरीर, भारी कवच और दो-हाथी तलवार देखकर कई सैनिक कांप उठते थे।
लेकिन Tanaji Malusare बिना एक क्षण सोचे उसके सामने खड़े हुए।

दोनों में भयंकर भिड़ंत हुई—
⚔️ तलवारें टकराईं
⚔️ चिंगारियाँ उड़ी
⚔️ ढालें टूट गईं
उदयभान शक्तिशाली था, लेकिन Tanaji Malusare तेज़, फुर्तीले और अद्भुत रणनीतिज्ञ थे।
कुछ क्षणों के लिए ऐसा लगा मानो Tanaji बढ़त ले रहे हैं,
लेकिन तभी एक जोरदार वार में Tanaji की ढाल टूट गई।
इतिहास गवाह है—
Tanaji ने टूटकर गिरने के बजाय, अपनी कमर का दुशाला (वस्त्र) हाथ में लपेटकर उसे ढाल की तरह इस्तेमाल किया और लड़ाई जारी रखी।
⭐ 3️⃣ युद्ध अपने चरम पर पहुँचा
मावळ सैनिक Tanaji Malusare की गर्जना सुनकर और भी उग्र हो उठे।
उधर उदयभान भी Tanaji को रोकने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक चुका था।
यह केवल दो योद्धाओं का युद्ध नहीं था—
यह स्वराज्य बनाम साम्राज्य का निर्णायक क्षण था।
और इसी क्षण, कोंढाणा का इतिहास हमेशा के लिए बदलने वाला था।
⭐Tanaji Malusare का अमर बलिदान
सिंहगढ़ का युद्ध अपने चरम पर पहुँच चुका था।
एक ओर थे Tanaji Malusare, स्वराज्य के लिए अपने प्राणों तक को समर्पित कर देने वाले योद्धा।
दूसरी ओर थे उदयभान राठौड़, मुगल साम्राज्य का शक्तिशाली और प्रशिक्षित सेनापति।
दोनों योद्धाओं की भिड़ंत इतनी भयानक थी कि उसे देखने वाले सैनिक भी मंत्रमुग्ध और भयभीत हो उठते थे।
उदयभान की भारी तलवार Tanaji Malusare की ढाल तोड़ चुकी थी, लेकिन Tanaji ने हार नहीं मानी।
उन्होंने अपनी कमर का दुशाला हाथ पर लपेटकर ढाल की जगह इस्तेमाल किया और युद्ध जारी रखा।
ऐसा साहस इतिहास में बहुत कम योद्धाओं में देखा गया है।
युद्ध इतना भीषण था कि दोनों ओर से सैनिकों की चीख-पुकार, तलवारों की खनखनाहट और कवच टूटने की आवाजें गूंज रही थीं।
लेकिन इस वीरगाथा का सबसे दर्दनाक और महान क्षण तब आया—
जब उदयभान ने मौका देखकर Tanaji पर एक अत्यंत जोरदार वार किया।
यह वार सीधा उनके सीने पर लगा।
Tanaji लड़खड़ाए…
लेकिन गिरने से पहले उन्होंने अपनी अंतिम शक्ति जुटाई और उदयभान पर ऐसा निर्णायक प्रहार किया कि वह भी गंभीर रूप से घायल होकर वहीं गिर पड़ा।

इतिहास के इस क्षण में दोनों महायोद्धा—
एक स्वराज्य के लिए, एक साम्राज्य के लिए—
मृत्यु की नींद में समा गए।
जब Tanaji गिरे, मावळ सैनिक रो पड़े।
कुछ ने उनसे कहा—
“सर्नोबा! उठा… स्वराज्य तुमच्याशिवाय अधुरं आहे!”
(“सरनोबा! उठिए… स्वराज्य आपके बिना अधूरा है!”)
लेकिन Tanaji Malusare अब नहीं उठ सकते थे।
उन्होंने वह कर दिखाया था जिसके लिए इतिहास उन्हें सिंहगढ़ का सिंह कहता है।
उनके बलिदान ने मावळ सैनिकों की नसों में आग भर दी।
वे चिल्लाए—
“सिंहगड आपला झाला! तानाजीचं ऋण फेडायचं आहे!”
और उन्होंने किले के शेष मुगल सैनिकों को परास्त कर दिया।
Tanaji का बलिदान केवल एक योद्धा की मृत्यु नहीं था—
यह स्वराज्य के लिए अमर ज्योति बन गया।
उनकी शहादत ने पूरे महाराष्ट्र को रुलाया, लेकिन गर्व से सिर भी ऊँचा कर दिया।
⭐“गड आला पण सिंह गेला” और शिवाजी महाराज का दर्द
कोंढाणा का युद्ध समाप्त हो चुका था।
किला जीत लिया गया था।
मावळ सैनिक थक कर चूर थे… लेकिन Tanaji Malusare के बलिदान की आग उनकी आँखों में अभी भी जल रही थी।
युद्ध खत्म होते ही मावळ सैनिकों ने शिवाजी महाराज को संदेश भेजा—
“राजे, गड आला… पण सिंह गेला.”
(“राजे, किला तो आ गया… लेकिन हमारा सिंह चला गया।”)
शिवाजी महाराज यह वाक्य सुनते ही स्तब्ध रह गए।
कुछ क्षणों तक वे बिल्कुल शांत रहे, मानो हवा भी थम गई हो।
फिर उनकी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली।
इतिहास गवाह है कि शिवाजी महाराज ने अपने जीवन में बहुत कम बार इतना दुःख दिखाया।

Tanaji केवल एक सेनापति नहीं थे—
वे शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र, विश्वासपात्र, और स्वराज्य के लिए मर-मिटने वाले योद्धा थे।
उनका बलिदान शिवाजी महाराज के हृदय को भीतर तक झकझोर गया।
शिवाजी महाराज ने दर्द भरे स्वर में कहा—
“कोंढाणा परत मिळाला, पण माझा सिंह गेला.”
(“कोंढाणा तो वापस मिल गया… पर मेरा सिंह खो गया।”)
उन्होंने Tanaji के परिवार का संपूर्ण भार अपने कंधों पर ले लिया।
उनकी पत्नी सावित्रीबाई और पुत्रों का जीवन शिवाजी महाराज ने सम्मान और सुरक्षा के साथ आगे बढ़ाया।
किले का नाम भी बदल दिया गया—
अब वह कोंढाणा नहीं, “सिंहगढ़” था।
क्योंकि वह किला Tanaji Malusare जैसे सिंह के रक्त से पवित्र हुआ था।
यह वह क्षण था जब पूरे महाराष्ट्र ने एक स्वर में कहा—
“जय तानाजी! जय सिंहगढ़!”
Tanaji का बलिदान केवल एक किले की जीत नहीं था—
यह स्वराज्य की आत्मा का विस्तार था।
और शिवाजी महाराज के आँसू इस इतिहास में वह अमिट निशान हैं, जो Tanaji और शिवाजी के प्रेम व निष्ठा को हमेशा जिंदा रखते हैं।
⭐Tanaji Malusare का पारिवारिक जीवन और सत्यापित ऐतिहासिक तथ्य
इतिहास Tanaji Malusare को मुख्यतः सिंहगढ़ के वीर योद्धा के रूप में याद करता है,
लेकिन उनका पारिवारिक जीवन भी उतना ही प्रेरणादायक और अनुशासित था।
वे एक साधारण, मेहनती किसान परिवार से थे, जो मराठा कुणबी मालुसरे कुल से संबंधित थे—यह कुल वीरता, ईमानदारी और सामाजिक नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध था।
Tanaji की पत्नी का नाम सावित्रीबाई था।
वे अत्यंत धर्मनिष्ठ, साहसी और मराठा परंपराओं में विश्वास रखने वाली स्त्री थीं।
कहते हैं कि Tanaji जब भी किसी युद्ध अभियान पर जाते, सावित्रीबाई उनके लिए दीप प्रज्वलित रखती थीं और उनकी सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना करती थीं।
Tanaji के पुत्र —
✔️ रायबा मालुसरे
दोनों पुत्र बचपन से ही अपने पिता के साहस और शिवाजी महाराज के आदर्शों से प्रेरित होकर बड़े हुए।
विशेष रूप से सूर्याजी ने सिंहगढ़ के युद्ध में अपने पिता की मृत्यु के बाद नेतृत्व संभाला और मुगल सैनिकों को पूरी तरह खदेड़ दिया।
उनकी युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता ने Tanaji की शहादत को सार्थक बना दिया।
⭐ Tanaji Malusare के कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य:

✔ Tanaji शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र थे—दोनों में अत्यंत गहरा भावनात्मक बंधन था।
✔ वे शिवाजी महाराज के सबसे विश्वसनीय सरदारों में से एक थे, जिन्हें “उजवा हात” (दाहिना हाथ) कहा जाता था।
✔ वे पहाड़ी युद्धकला और गनिमी कावा (गुरिल्ला तकनीक) में महारत रखते थे।
✔ कोंढाणा के लिए निकलते समय वे अपनी पुत्री रायबा की शादी के लिए घर पर ही तैयारियाँ कर रहे थे—लेकिन स्वराज्य को प्राथमिकता देते हुए उन्होंने विवाह छोड़ युद्ध चुना।
✔ उनकी मृत्यु के बाद शिवाजी महाराज ने उनके परिवार की पूरी जिम्मेदारी उठाई।
✔ सिंहगढ़ किले का नया नाम “सिंहगढ़” Tanaji के सम्मान में ही रखा गया।
Tanaji का पारिवारिक जीवन यह साबित करता है कि एक महान योद्धा उतना ही महान परिवारिक व्यक्ति भी होता है—
जो सिर्फ युद्धभूमि में नहीं, बल्कि अपने परिवार, संस्कृति और कर्तव्य के प्रति भी समर्पित रहता है।
⭐Tanaji Malusare के 12+ Unknown & Rare Facts
इतिहास में Tanaji Malusare जितने प्रसिद्ध हैं, उनके जीवन के कई ऐसे तथ्य हैं जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं।
🔥 1️⃣ Tanaji का असली नाम ‘Tanha ji’ माना जाता है
कई पांडुलिपियों में Tanaji का नाम “Tanha Ji” लिखा मिलता है, जिसका अर्थ है—
“वह जो अकेले ही युद्ध का रुख बदल दे।”
🔥 2️⃣ वे जन्मजात ‘गनिमी कावा’ योद्धा थे
गुरिल्ला युद्ध तकनीक बाद में मावळ सैनिकों को सिखाई गई,
लेकिन Tanaji इसे बचपन से प्राकृतिक रूप से सीख चुके थे।
🔥 3️⃣ वे शिवाजी महाराज को सिर्फ राजा नहीं, ‘भाऊ’ कहते थे
दोनों का रिश्ता राजा-सेनापति का नहीं,
बल्कि खून से भी गहरा भाईचारे का था।
🔥 4️⃣ कोंढाणा अभियान की जानकारी घर में किसी को नहीं थी
सावित्रीबाई और रिश्तेदारों को Tanaji की योजना का पता नहीं था।
सबको लगा वे शादी की तैयारी के लिए बाहर गए हैं।
🔥 5️⃣ रायबा की शादी के कपड़े उन्होंने युद्ध पर जाते समय ही पहने थे
इतिहासकार बताते हैं कि Tanaji नए वस्त्रों में थे,
क्योंकि शादी के लिए ही वे तैयार थे।
🔥 6️⃣ येशी गोरपद Tanaji के परिवार में पीढ़ियों से पाली जाती थी
यह केवल एक तकनीक नहीं थी—
यह मालुसरे परिवार की पीढ़ियों पुरानी परंपरा थी।
🔥 7️⃣ उदयभान राठौड़ का सम्मान भी Tanaji करते थे
दोनों योद्धा अप्रतिम साहस के धनी थे।
युद्ध में Tanaji ने उसके कौशल को खुलकर स्वीकार किया।

🔥 8️⃣ Tanaji ने ढाल टूटने पर दुशाला को ढाल की तरह उपयोग करने का विचार तुरंत बनाया
इतनी तेज़ निर्णय क्षमता उस समय के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में भी दुर्लभ थी।
🔥 9️⃣ Tanaji Malusare की मृत्यु से पहले उनके अंतिम शब्दों का उल्लेख मिलता है
“स्वराज्याचं काम अपुरं ठेवून जाऊ नये!”
(“स्वराज्य का काम अधूरा न रह जाए!”)
🔥 🔟 सूर्याजी को अंतिम आदेश— “गड सोडायचा नाही!”
युद्धभूमि में गिरते समय Tanaji ने अपने भाई सूर्याजी से कहा था—
“किला छोड़ना मत।”
और सूर्याजी ने पिता-समान भाई का आदेश निभाया।
🔥 1️⃣1️⃣ सिंहगढ़ की जीत के बाद पूरा महाराष्ट्र 12 दिनों तक शोक में रहा
मावळ क्षेत्र में आज भी इस घटना को
“दु:खद विजय” कहा जाता है।
🔥 1️⃣2️⃣ Tanaji का पन्हालगड, फिरंगोझी और रायगढ़ के गुप्त अभियानों में भी योगदान था
लेकिन इन्हें कभी लोकप्रियता नहीं मिली—
क्योंकि Tanaji Malusare प्रसिद्धि नहीं, कर्तव्य के लिए लड़ते थे।
🔥 1️⃣3️⃣ Tanaji के नाम पर आज भी महाराष्ट्र में 60+ स्कूल, चौक और स्मारक हैं
यह उनकी शहादत की अमरता का सबसे बड़ा प्रमाण है।
Tanaji Malusare केवल एक योद्धा नहीं थे—
वे सिंहगढ़ के सिंह, शिवाजी महाराज के दाहिने हाथ,
और स्वराज्य के अमर स्तंभ थे।
⭐Final Conclusion
Tanaji Malusare केवल एक युद्ध नायक नहीं थे—
वे स्वराज्य के सबसे बड़े बलिदानी स्तंभ,
छत्रपति शिवाजी महाराज के विश्वासपात्र भाई,
और सिंहगढ़ के अमर सिंह थे।
उनकी कहानी सिर्फ एक किले को जीतने की नहीं,
बल्कि कर्तव्य, प्रेम, बलिदान और स्वराज्य की कहानी है।
एक ओर उनका परिवार शादी की तैयारियों में लगा था,
और दूसरी ओर वे अपने राजा के सपने को अधूरा देखने के लिए तैयार नहीं थे।
उन्होंने जीवन के सबसे सुखद अवसर — अपनी पुत्री रायबा की शादी — को त्यागकर
एक ऐसी लड़ाई चुनी, जिसमें लौटने की संभावना बेहद कम थी।
लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा धर्म था—
स्वराज्य।

उन्होंने उदयभान जैसे शक्तिशाली योद्धा का सामना किया,
ढाल टूटने पर दुशाला लपेटकर लड़ाई जारी रखी,
और अंत में अपने प्राणों की आहुति देकर कोंढाणा को स्वराज्य में वापस लाया।
जब शिवाजी महाराज ने सुना—
“गड आला पण सिंह गेला।”
तो पूरा महाराष्ट्र रो उठा।
कोंढाणा का नाम बदलकर सिंहगढ़ किया गया—
ताकि आने वाली हर पीढ़ी जान सके कि यह किला
एक सिंह के बलिदान से जीता गया था।
आज Tanaji Malusare की गाथा केवल इतिहास नहीं—
बल्कि भारतीय वीरता, निष्ठा और राष्ट्रप्रेम का सर्वोच्च प्रतीक है।
External Links: 1 https://en.wikipedia.org/wiki/Tanaji_Malusare 2 https://www.hindujagruti.org/articles/94_tanaji-malusare.html
🔥 Share the Untold Story of Tanaji Malusare — सिंहगढ़ के ‘अमर सिंह’ की गाथा
अगर इस लेख ने आपको दिखा दिया है कि स्वराज्य केवल तलवारों से नहीं, बल्कि Tanaji Malusare जैसे बलिदानी वीरों से बना — तो इसे शेयर करें। इतिहास के लिए, स्वराज्य की लौ के लिए, और उस सिंह के लिए जिसने किले की कीमत अपने प्राणों से चुकाई।
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हर हफ़्ते आपको ऐसे स्वराज्यवीरों की कहानियाँ मिलेंगी जिन्होंने कर्तव्य को जीवन से ऊपर रखा। Tanaji Malusare का बलिदान उनमें सबसे उज्ज्वल प्रकाश है।
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Tanaji Malusare ने सिंहगढ़ जीतकर नहीं, बल्कि अपने प्राणों से स्वराज्य की नींव को सींचकर इतिहास में अमर स्थान पाया।
👉 नीचे कमेंट में लिखें: “जय सिंहगढ़! जय तानाजी!”
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